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सोमवार, जून 10

बुद्धिमान हंस

एक बहुत बड़ा विशाल पेड़ था। उस पर बहुत सारे हंस रहते थे। उनमें एक बहुत बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी हंस था। सब उसका आदर करते और सभी उसको ताऊ कहकर बुलाते थे। एक दिन उसने एक नन्ही-सी बेल को पेड़ के तने पर बहुत नीचे लिपटते पाया। ताऊ ने दूसरे हंसों को बुलाकर कहा, देखो, इस बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुंह में ले जाएगी। एक युवा हंस हंसते हुए बोला, ताऊ, यह छोटी-सी बेल हमें कैसे मौत के मुंह में ले जाएगी? 

बुद्धिमान हंस ने समझाया, आज यह तुम्हें छोटी-सी लग रही है। धीरे-धीरे यह पेड़ के सारे तने को लपेटा मारकर ऊपर तक आएगी। फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड़ से चिपक जाएगा, तब नीचे से ऊपर तक पेड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ी बन जाएगी। कोई भी शिकारी सीढ़ी के सहारे चढ़कर हम तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएंगे। दूसरे हंस को यकीन न आया, एक छोटी-सी बेल कैसे सीढ़ी बनेगी? 

तीसरा हंस बोला - ताऊ, तू तो एक छोटी-सी बेल को खींचकर ज्यादा ही लंबा कर रहा है। एक हंस बड़बड़ाया, यह ताऊ अपनी अक्ल का रौब डालने के लिए अंट-शंट कहानी बना रहा है। इस प्रकार किसी भी हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया। इतनी दूर तक देख पाने की उनमें अक्ल कहां थी? समय बीतता रहा। बेल लिपटते-लिपटते ऊपर शाखाओं तक पहुंच गई। बेल का तना मोटा होना शुरू हुआ और सचमुच ही पेड़ के तने पर सीढ़ी बन गई। जिस पर आसानी से चढ़ा जा सकता था। सबको ताऊ की बात की सच्चाई सामने नजर आने लगी। पर अब कुछ नहीं किया जा सकता था क्योंकि बेल इतनी मजबूत हो गई थी कि उसे नष्ट करना हंसों के बस की बात नहीं थी। 

एक दिन जब सब हंस दाना चुगने बाहर गए हुए थे तब एक बहेलिया उधर आ निकला। पेड़ पर बनी सीढ़ी को देखते ही उसने पेड़ पर चढ़कर जाल बिछाया और चला गया। शाम को सारे हंस लौट आए और जब पेड़ से उतरे तो बहेलिए के जाल में बुरी तरह फंस गए। जब वे जाल में फंस गए और फड़फड़ाने लगे, तब उन्हें ताऊ की बुद्धिमानी और दूरदर्शिता का पता लगा। सब ताऊ की बात न मानने के लिए लज्जित थे और अपने आपको कोस रहे थे। ताऊ सबसे रुष्ट था और चुप बैठा था। एक हंस ने हिम्मत करके कहा, ताऊ, हम मूर्ख हैं, लेकिन अब हमसे मुंह मत फेरो। दूसरा हंस बोला, इस संकट से निकालने की तरकीब तुम ही हमें बता सकते हो  आगे हम तेरी कोई बात नहीं टालेंगे |

सभी हंसों ने हामी भरी तब ताऊ ने उन्हें बताया, मेरी बात ध्यान से सुनो। सुबह जब बहेलिया आएगा, तब मुर्दा होने का नाटक करना। बहेलिया तुम्हें मुर्दा समझकर जाल से निकालकर जमीन पर रखता जाएगा। वहां भी मरे समान पड़े रहना। जैसे ही वह अन्तिम हंस को नीचे रखेगा, मैं सीटी बजाऊंगा। मेरी सीटी सुनते ही सब उड़ जाना। सुबह बहेलिया आया। हंसों ने वैसा ही किया, जैसा ताऊ ने समझाया था। सचमुच बहेलिया हंसों को मुर्दा समझकर जमीन पर पटकता गया। सीटी की आवाज के साथ ही सारे हंस उड़ गए। बहेलिया अवाक होकर देखता रह गया।

भावार्थ - वरिष्ठजन घर की धरोहर हैं। वे हमारे संरक्षक एवं मार्गदर्शक है। जिस तरह आंगन में पीपल का वृक्ष फल नहीं देता, परंतु छाया अवश्य देता है। उसी तरह हमारे घर के बुजुर्ग हमे भले ही आर्थिक रूप से सहयोग नहीं कर पाते है, परंतु उनसे हमे संस्कार एवं उनके अनुभव से कई बाते सीखने को मिलती है, बड़े-बुजुर्ग परिवार की शान है वो कोई बोझ नहीं हैं।

मंगलवार, अप्रैल 25

किसान और परमात्मा की कहानी – संघर्ष का महत्व

एक बार एक किसान परमात्मा से बहुत नाराज़ हो गया। हर साल उसकी फ़सल किसी न किसी कारण से खराब हो जाती थी। कभी बाढ़ आती, कभी सूखा पड़ता, कभी तेज धूप तो कभी ओलों से खेत बर्बाद हो जाते।

किसान दुखी होकर बोला –
"हे प्रभु, आप परमात्मा हैं लेकिन खेती-बाड़ी की आपको शायद ज्यादा जानकारी नहीं है। हर बार मेरी फ़सल खराब हो जाती है। कृपा करके मुझे एक साल का मौका दीजिए। उस साल मौसम मेरी इच्छा के अनुसार होगा। तब आप देखना मैं कैसे अन्न के भंडार भर देता हूँ।"

परमात्मा मुस्कुराए और बोले -
"ठीक है, जैसा तुम चाहोगे वैसा ही मौसम होगा। इस साल मैं कोई दखल नहीं दूँगा।"

किसान के अनुसार मौसम

अब किसान ने गेहूं की फ़सल बोई। जब उसे धूप चाहिए थी, धूप मिल गई। जब पानी चाहिए था, बारिश हो गई। उसने तेज आंधी, बाढ़, ओले और तूफ़ान को आने ही नहीं दिया।

दिन बीतते गए और फसल खूब लहलहाने लगी। किसान खुशी से झूम उठा। उसे लगा -
"अब परमात्मा को समझ आएगा कि खेती कैसे की जाती है। कितने साल से बेकार में हमें परेशान करते आ रहे हैं। इस साल अनाज की भरपूर पैदावार होगी।"

कटाई का समय और किसान का सदमा

समय बीता और फसल कटने का मौसम आ गया। किसान बड़े गर्व और उत्साह के साथ खेत में पहुँचा। सुनहरी बालियाँ देखकर उसका मन प्रसन्न हो उठा।

लेकिन जैसे ही उसने फसल काटनी शुरू की, वह चौंक गया। हर एक बाली अंदर से खाली थी। गेहूं का एक भी दाना नहीं था। पूरी फ़सल खोखली निकली।

किसान छाती पकड़कर बैठ गया और दुखी होकर बोला -
"हे प्रभु, ये क्या हुआ? मैंने तो धूप, पानी और सब कुछ सही समय पर दिया था। फिर भी फ़सल खाली क्यों रह गई?"

परमात्मा का उत्तर

परमात्मा ने बड़ी शांति से कहा -
"ये तो होना ही था। तुमने अपने पौधों को संघर्ष करने का एक भी मौका नहीं दिया। ना तेज धूप में उन्हें तपने दिया, ना आंधी-पानी से जूझने दिया। जब पौधे कठिन परिस्थितियों से गुजरते हैं, तभी वे मजबूत बनते हैं और अनाज पैदा करते हैं।"

"संघर्ष ही शक्ति देता है, ऊर्जा देता है, जीवन में गहराई और मजबूती लाता है। सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपना और हथौड़े से पिटना पड़ता है। ठीक वैसे ही इंसान और पौधे भी चुनौतियों से गुजरकर ही अनमोल बनते हैं।"

शिक्षा:- इसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो, चुनौती ना हो तो आदमी खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता। ये चुनौतियां ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं, उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनौतियां तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे। अगर जिंदगी में प्रखर बनना है, प्रतिभाशाली बनना है, तो संघर्ष और चुनौतियों का सामना तो करना ही पड़ेगा।



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