मंगलवार, अप्रैल 25

संघर्ष का महत्व

एक बार, एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया। कभी बाढ़ आ जाये, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जाये। हर बार कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी ख़राब हो जाती थी। एक दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा - "देखिये प्रभु,आप परमात्मा हैं, लेकिन लगता है आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है, एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये, जैसा मैं चाहूँ वैसा मौसम हो, फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा।" परमात्मा मुस्कुराये और कहा - ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा।

अब, किसान ने गेहूं की फ़सल बोई, जब धूप चाही, तब धूप मिली, जब पानी चाही तब पानी। तेज धूप, ओले, बाढ़, आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी, क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी। किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, की फसल कैसे करते हैं, बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान करते रहे।

फ़सल काटने का समय भी आ गया| किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा, एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया| गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था, सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी, बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा – प्रभु ये क्या हुआ ?

तब परमात्मा बोले – "ये तो होना ही था, तुमने पौधों को संघर्ष का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया। ना तेज धूप में उनको तपने दिया, ना आंधी ओलों से जूझने दिया, उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया, इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए। जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पौधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वो ही उसे शक्ति देता है, उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है। सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने, हथौड़ी से पिटने, गलने जैसी चुनोतियों से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है, उसे अनमोल बनाती है।"

शिक्षा:- इसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो, चुनौती ना हो तो आदमी खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता। ये चुनौतियां ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं, उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनौतियां तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे। अगर जिंदगी में प्रखर बनना है, प्रतिभाशाली बनना है, तो संघर्ष और चुनौतियों का सामना तो करना ही पड़ेगा।

गुरुवार, मार्च 23

सच्ची जीत

एक गांव में एक किसान रहता था। उसका नाम शेर सिंह था । शेर सिंह जैसा भंयकर और अभिमानी उस गाँव में कोई न था । वह बात-बात पर बिगड़ जाता और लड़ाई कर लेता था। वह गांव के लोगों से सीधे मुंह बात तक नहीं करता था। न तो वह कभी किसी के घर जाता और न ही रास्ते में मिलने पर किसी को प्रणाम करता था। गांव का कोई भी व्यक्ति उसके इसी अहंकार के कारण उससे बात करने में भी इच्छुक नही था |  

कुछ समय बाद, उसी गांव में एक दयाराम नाम का एक किसान आकर रहने लगा। वह बहुत सीधा और भला आदमी था। सबसे विनम्रता से बोलता था। सबकी कुछ न कुछ सहायता किया करता था। सभी किसान उसका आदर करते और अपने कामों में उससे सलाह लिया करते थे। 

गांव के किसान ने दयाराम से कहा, “भाई दयाराम! तुम कभी शेर सिंह के घर मत जाना। उससे दूर ही रहना। वह बहुत झगड़ालू व्यक्ति है।” 

दयाराम ने हंसकर कहा, “शेर सिंह ने मुझसे झगड़ा किया तो, मैं उसे मार ही डालूंगा।” 

दूसरे किसान भी हंस पड़े। वे जानते थे कि दयाराम बहुत दयालु है। वह किसी को मारना तो दूर, किसी को गाली तक नहीं दे सकता। लेकिन यह बात किसी ने शेर सिंह से कह दी। शेर सिंह क्रोध से लाल हो गया। वह उसी दिन से दयाराम से झगड़ने की चेष्टा करने लगा। उसने दयाराम के खेत में अपने बैल छोड़ दिए। बैल बहुत-सा खेत चर गए, किंतु दयाराम ने उन्हें चुपचाप खेत से हांक दिया। 

शेर सिंह ने दयाराम के खेत में जाने वाली पानी की नाली तोड़ दी। पानी बहने लगा। दयाराम ने आकर चुपचाप नाली बांध दी। इसी प्रकार शेर सिंह बराबर दयाराम की हानि करता रहा, परंतु दयाराम ने एक बार भी उसे झगड़ने का अवसर नहीं दिया। 

एक दिन दयाराम के यहां उनके संबंधी ने लखनऊ के मीठे खरबूजे भेजे, दयाराम ने सभी किसानों के घर एक-एक खरबूजा भेज दिया, लेकिन शेर सिंह ने उसका खरबूजा यह कह कर लौटा दिया कि “मैं भिखारी नहीं हूं। मैं दूसरों का दान नहीं लेता।” 

बरसात आई। शेर सिंह एक गाड़ी अनाज भर कर दूसरे गांव से आ रहा था। रास्ते में एक नाले में कीचड़ में उसकी गाड़ी फंस गई। शेर सिंह के बैल दुबले थे। वे गाड़ी को कीचड़ में से निकाल नहीं सके। जब गांव में इस बात की खबर पहुंची तो सब लोग बोले, “शेर सिंह बड़ा दुष्ट है। उसे रात भर नाले में पड़े रहने दो।” 

लेकिन दयाराम ने अपने बलवान बैल पकड़े और नाले की ओर चल पड़ा। लोगों ने उसे रोका और कहा, “दयाराम! शेर सिंह ने तुम्हारी बहुत हानि की है। तुम तो कहते थे कि मुझसे लड़ेगा तो उसे मार ही डालूंगा। फिर तुम आज उसकी सहायता करने क्यों जाते हो?” 

दयाराम बोला, “मैं आज सचमुच उसे मार डालूंगा। तुम लोग सवेरे उसे देखना।” 

जब शेर सिंह ने दयाराम को बैल लेकर आते देखा तो गर्व से बोला, “तुम अपने बैल लेकर लौट जाओ। मुझे किसी की सहायता नहीं चाहिए।” 

दयाराम ने कहा, “तुम्हारे मन में आवे तो गाली दो, मन में आवे मुझे मारो, इस समय तुम संकट में हो। तुम्हारी गाड़ी फंसी है और रात होने वाली है। मैं तुम्हारी बात इस समय नहीं मान सकता।”

दयाराम ने शेर सिंह के बैलों को खोलकर अपने बैल गाड़ी में जोत दिए। उसके बलवान बैलों ने गाड़ी को खींचकर नाले से बाहर कर दिया। शेर सिंह गाड़ी लेकर घर आ गया। उसका दुष्ट स्वभाव उसी दिन से बदल गया। वह कहता था, “दयाराम ने अपने उपकार के द्वारा मुझे मार ही दिया। अब मैं वह अहंकारी शेर सिंह नहीं रहा।” 

अब वह सबसे नम्रता और प्रेम का व्यवहार करने लगा। बुराई को भलाई से जीतना ही सच्ची जीत है। और इस प्रकार दयाराम ने सच्ची जीत पाई।

रविवार, फ़रवरी 7

सुनहरा पक्षी

A Golden Bird

एक गांव में एक धनी व्यापारी रहता था | उसके पास धन तो बहुत था पर वह आलसी भी बहुत था | व्यापर के सभी कार्य उसने नौकरो पर छोड़ दिए थे और नौकर भी उसे आमदनी का पूरा हिस्सा नहीं देते थे | धीरे-धीरे उसका व्यापार मंदा होने लगा, अधिक आलस्य के कारण उस धनि व्यक्ति स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता था | एक दिन उस व्यापारी का बचपन का एक मित्र उसके घर आया | व्यापारी ने अपनी बीमारी के बारे में उसे बताया तो, मित्र ने कहा -"भाई, तुम्हारी बीमारी को दूर करने का एक उपाय है मेरे पास लेकिन उसके लिए तुम्हें सुबह जल्दी उठना पड़ेगा |" व्यापारी उत्सुकता से बोला - "मैं तैयार हूँ |" मित्र बोला - "प्रत्येक प्रभातवेला में एक सुनहरा पक्षी आता है, यदि तुम उसे देख लोगे तो तुम्हारे सभी समस्याएं दूर हो जाएँगी |" 


वह व्यापारी दूसरे दिन से ही सुबह जल्दी उठकर अपने खेतों की तरफ चल पड़ा | रास्ते में उसने देखा, उसका एक नौकर उसका सामान अपने घर ले जाने की तैयारी कर रहा था | मालिक को देखकर उसने अपना सामान वही छोड़ दिया और घर चला गया | अगले दिन व्यापारी ने देखा की उसका ग्वाला गाय का दूध निकालने के बाद दूध का बर्तन अपने घर की ओर ले जा रहा था | मालिक को देख वह भी दूध का बर्तन छोड़ भाग खड़ा हुआ | 


अब व्यापारी रोज सुबह उठकर उस सुनहरे-पक्षी की खोज में जाता तो सभी नौकर सचेत हो जाते, ठीक से काम करने लगते | दूध की अधिक मात्रा में बिक्री होने लगी, खेतों से भी पूरी उपज गोदामों में पहुंचने लगी, दुकान और गोदामों में होने वाली चोरी भी बंद हो गयी | अब उस व्यापारी को भी सुबह उठना अच्छा लगने लगा | 


एक दिन उसी मित्र के पुनः मिलने पर व्यापारी ने उस सुनहरे पक्षी के बारे में पूछा, तो मित्र ने हंसकर कहा - "कौन सा सुनहरा पक्षी?" मित्र के इस जवाब से वह व्यापारी एकदम से दंग रह गया | व्यापारी की उलझन को देखते हुए उसका मित्र उसे समझाता है कि तुम्हारे स्वास्थ्य और तुम्हारी उन्नति के रूप में वह सुनहरा पक्षी तुम्हें बहुत पहले ही मिल चुका हैं | 


सारांश: हम लोग भी इस तरह सुनहरे पक्षी की तलाश में इधर-उधर भटकते रहते हैं परन्तु हम कभी भी अपनी सेहत और अपने जीवन की बिल्कुल भी परवाह नहीं करते है, हम लोग सिर्फ पैसो के पीछे भागते रहते है | जीवनयापन के आज के इस भागदौड़ में हम जितना तकनीक के नजदीक हो रहे उतना ही सभी अपनी सेहत को हानि पंहुचा रहे और आलस्य जाते रहे है | 



Tags: Golden Bird, Life Coach, Life's Busy Schedule, Lazy Life, Healthy Life 

सोमवार, मार्च 11

प्रभु की महिमा

यह सभी जानते हैं की छोटी उम्र के बच्चे बहुत ही हठी होते हैं यदि वे किसी एक बात पर हठ करले तो वह अपनी बात मनवा कर ही मानते हैं| परन्तु जब यही हठ सच्चा और निस्वार्थ हो तो इस हठ के आगे प्रभु भी झुक जाते हैं|

एक छोटा सा बालक अक्सर अपने माता-पिता से परमात्मा से मिलने की जिद किया करता था। उसकी सिर्फ इतनी ही इच्छा थी की एक समय का भोजन वह परमात्मा के साथ मिलकर करे| और अपनी इसी हठ के कारण 1 दिन उसने अपने थैले में 5, 6 रोटियां रखीं और परमात्मा को ढूंढने निकल पड़ा। चलते चलते वह नदी किनारे तक आ पंहुचा था और संध्या का समय भी हो गया।

Lord's Glory


उसने देखा नदी के तट पर 1 बुजुर्ग व्यक्ति बैठा हैं और ऐसा लग रहा था मनो जैसे वह बुजुर्ग उसी बच्चे के इन्तजार में वहां बैठा उसका रास्ता देख रहा हों।

वह नन्हा-सा बालक, उस बुजुर्ग व्यक्ति के पास जा कर बैठ गया और अपने थैले में से १ रोटी निकालकर खाने लगा। उस बालक ने अपना रोटी वाला उस हाथ बुजुर्ग व्यक्ति की ओर बढ़ाया और मुस्कुराने लगा, बुजुर्ग ने भी रोटी ले ली और खाने लगा। उस बुजुर्ग व्यक्ति के झुर्रियों वाले चेहरे पर एक अजीब सी ख़ुशी छा गई, उसकी आँखों से  ख़ुशी के आंसू छलकने लगे|

बच्चा बढ़ी ही मासूमियत से उस बुजुर्ग व्यक्ति को लगातार देखे जा रहा था, जब उस बुजुर्ग व्यक्ति ने रोटी खा ली तो बच्चे ने उन्हें एक और रोटी दे दी।

वह बुजुर्ग व्यक्ति अब बहुत खुश था। बच्चा भी बहुत खुश दिखाई दे रहा था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह के पल बिताये। जब रात घिरने लगी तो बच्चा उस बुजुर्ग व्यक्ति से इजाज़त ले घर की ओर चलने लगा।
वह बार-बार पीछे मुड़ कर देखता, तो पाता की वह बुजुर्ग व्यक्ति भी उसी की ओर देख रहा था।
बच्चा घर पहुँचता हैं तो माँ ने अपने बेटे को आया देख जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी, बच्चा भी बहूत खुश था।

माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो अपने बच्चे से उसकी ख़ुशी का कारण पूछा, बच्चे ने बताया- "माँ....आज मैंने परमात्मा को देखा उनके साथ बैठ कर रोटी खाई और बहुत सारी बातें भी की|" माँ आपको पता है उन्होंने मेरी रोटी भी खायी और भी मुझे ढेर सारा प्यार भी किया परन्तु माँ भगवान् बहुत वृद्ध हो गये हैं उनके चेहरे पर झुर्रिया दिखाई दे रही थी|

मैं आज सच में बहुत खुश हूँ….माँ
दूसरी तरफ बुजुर्ग व्यक्ति भी जब अपने गाँव पहूँचा तो गाव वालों ने देखा वह आज बहुत खुश हैं, तो एक ने उनसे उनके खुश होने का कारण पूछा?

बुजुर्ग व्यक्ति ने बताया - "मैं पिछले 2 दिनों से नदी के तट पर अकेला भूखा बैठा था, किसी ने मुझ पर दया नहीं दिखाई परन्तु मेरा विश्वास था की मेरे प्रभु जरूर आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे।

और तुम्हे पता हैं आज मेरे प्रभु आए थे, उन्होंने बढे प्यार से मुझे रोटी खिलाई और वही मेरे साथ बैठ कर स्वयं भी रोटी खाई, प्रभु बहुत प्यार से मेरी और देखते और मुस्कुरा जाते, जाते समय उन्होंने मुझे गले भी लगाया| वह तो एक बहुत ही मासूम से बच्चे की तरह दिखते हैं।

सारांश:

असल में बात सिर्फ इतनी सी थी की दोनों के दिलों में परमात्मा के लिए जो प्यार और श्रद्धा थी, वो बहुत ही सच्ची थी। परमात्मा ने भी दोनों को, दोनों के लिये, दोनों में ही खुद (परमात्मा) को भेज दिया। जब मन परमात्मा की  भक्ति में रम जाता है तो हमे हर एक में वो ही नजर आने लगता हैं|


Tags: Lord's Glory, God's Grace, Stubbornness of a Child

सोमवार, दिसंबर 24

हनुमान चालीसा में छिपे मैनेजमेंट के सूत्र

बहुत से लोगों की दिनचर्या हनुमान चालीसा के अध्ययन से शुरू होती है। पर क्या आप जानते हैं कि श्री हनुमान चालीसा में 40 चौपाइयां हैं, ये उस क्रम में लिखी गई हैं जो एक आम आदमी की जिंदगी का क्रम होता है।

माना जाता है तुलसीदास ने चालीसा की रचना मानस से पूर्व की थी। हनुमान जी को गुरु बनाकर उन्होंने प्रभु श्रीराम को पाने की शुरुआत की।

अगर आप सिर्फ हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं तो यह आपको भीतरी शक्ति तो दे ही रही है लेकिन अगर आप इसके अर्थ में छिपे जिंदगी के सूत्र को भी समझ लें तो आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलना निश्चित हैं। 

हनुमान चालीसा सनातन परंपरा में लिखी गई सर्वप्रथम चालीसा है शेष सभी चालीसाएं इसके बाद ही लिखी गई। 

हनुमान चालीसा की शुरुआत से अंत तक सफलता के कई सूत्र हैं। आइए जानते हैं हनुमान चालीसा से आप अपने जीवन में क्या-क्या बदलाव ला सकते हैं।

Management Formulae in Hanuman Chalisa


रविवार, मार्च 4

समय का सदुपयोग

एक दिन एक व्यक्ति किसी महात्मा के पास पंहुचा और कहने लगा, ‘जीवन अल्पकाल हैं | इस थोड़े से समय में क्या-क्या करूँ ? बचपन में ज्ञान नहीं होता, युवावस्था में गृहस्थी का बोझ होता हैं, बुढ़ापा रोगग्रस्त और पीड़ादायक होता हैं | तब भला ज्ञान कैसे मिले ? लोक सेवा कब की जाये ?’ यह कहकर वह रोने लगा | उसे रोते देख महात्मा जी भी रोने लगे | उस आदमी ने पुछा ‘आप क्यों रोते हो ?’

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अद्भुत मांग


प्रख्यात संत बाबा गुलाब चन्द्र अघोरी अपने अद्भुत चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध थे | उनके चमत्कार देख लोग दांतों तले उंगली दबा लेते थे | लोगो को चमत्कार दिखाते-दिखाते बाबा ने उसमे महारत हासिल कर ली | इससे उनमे अभिमान आ गया, उन्हें एहसास हो गया की वह कुछ भी कर सकते हैं| वह जिन भी लोगो से मिलते अपने चमत्कारों या अपनी सिद्धियों की चर्चा जरुर करते |


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