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मंगलवार, जून 11

आनंदित रहने की कला

एक राजा बहुत दिनों से विचार कर रहा था कि वह राजपाट छोड़कर अध्यात्म (ईश्वर की खोज) में समय लगाए। राजा ने इस बारे में बहुत सोचा और फिर अपने गुरु को अपनी समस्याएँ बताते हुए कहा कि उसे राज्य का कोई योग्य वारिस नहीं मिल पाया है। राजा का बेटा छोटा है, इसलिए वह राजा बनने के योग्य नहीं है। जब भी उसे कोई पात्र इंसान मिलेगा, जिसमें राज्य सँभालने के सारे गुण हों, तो वह राजपाट छोड़कर शेष जीवन अध्यात्म के लिए समर्पित कर देगा।

गुरु ने कहा - "राज्य की बागड़ोर मेरे हाथों में क्यों नहीं दे देते? क्या तुम्हें मुझसे ज्यादा पात्र, ज्यादा सक्षम कोई इंसान मिल सकता है?" राजा ने कहा - "मेरे राज्य को आप से अच्छी तरह भला कौन संभल सकता है? लीजिए, मैं इसी समय राज्य की बागड़ोर आपके हाथों में सौंप देता हूँ।"

गुरु ने पूछा - "अब तुम क्या करोगे?"  राजा बोला - "मैं राज्य के खजाने से थोड़े पैसे ले लूँगा, जिससे मेरा बाकी जीवन चल जाए।" गुरु ने कहा - "मगर अब खजाना तो मेरा है, मैं तुम्हें एक पैसा भी लेने नहीं दूँगा।"

राजा बोला - "फिर ठीक है, "मैं कहीं कोई छोटी-मोटी नौकरी कर लूँगा, उससे जो भी मिलेगा गुजारा कर लूँगा।" गुरु ने कहा - "अगर तुम्हें काम ही करना है तो मेरे यहाँ एक नौकरी खाली है। क्या तुम मेरे यहाँ नौकरी करना चाहोगे?"

राजा बोला - "कोई भी नौकरी हो, मैं करने को तैयार हूँ।" गुरु ने कहा - "मेरे यहाँ राजा की नौकरी खाली है। मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे लिए यह नौकरी करो और हर महीने राज्य के खजाने से अपनी तनख्वाह लेते रहना।"

एक वर्ष बाद गुरु ने वापस लौटकर देखा कि राजा बहुत खुश था। अब तो दोनों ही काम हो रहे थे। जिस अध्यात्म के लिए राजपाट छोड़ना चाहता था, वह भी चल रहा था और राज्य सँभालने का काम भी अच्छी तरह चल रहा था। अब उसे कोई चिंता नहीं थी ।

इस कहानी से समझ में आएगा की वास्तव में क्या परिवर्तन हुआ? कुछ भी तो नहीं! राज्य वही, राजा वही, काम वही, सिर्फ दृष्टिकोण बदल गया ।

इसी तरह हम भी जीवन में अपना दृष्टिकोण बदलें। मालिक बनकर नहीं, बल्कि यह सोचकर सारे कार्य करें की, "मैं ईश्वर कि नौकरी कर रहा हूँ" अब ईश्वर ही जाने। सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दें। फिर ही आप हर समस्या और परिस्थिति में खुशहाल रह पाएँगे।

सोमवार, जून 10

बुद्धिमान हंस

एक बहुत बड़ा विशाल पेड़ था। उस पर बहुत सारे हंस रहते थे। उनमें एक बहुत बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी हंस था। सब उसका आदर करते और सभी उसको ताऊ कहकर बुलाते थे। एक दिन उसने एक नन्ही-सी बेल को पेड़ के तने पर बहुत नीचे लिपटते पाया। ताऊ ने दूसरे हंसों को बुलाकर कहा, देखो, इस बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुंह में ले जाएगी। एक युवा हंस हंसते हुए बोला, ताऊ, यह छोटी-सी बेल हमें कैसे मौत के मुंह में ले जाएगी? 

बुद्धिमान हंस ने समझाया, आज यह तुम्हें छोटी-सी लग रही है। धीरे-धीरे यह पेड़ के सारे तने को लपेटा मारकर ऊपर तक आएगी। फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड़ से चिपक जाएगा, तब नीचे से ऊपर तक पेड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ी बन जाएगी। कोई भी शिकारी सीढ़ी के सहारे चढ़कर हम तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएंगे। दूसरे हंस को यकीन न आया, एक छोटी-सी बेल कैसे सीढ़ी बनेगी? 

तीसरा हंस बोला - ताऊ, तू तो एक छोटी-सी बेल को खींचकर ज्यादा ही लंबा कर रहा है। एक हंस बड़बड़ाया, यह ताऊ अपनी अक्ल का रौब डालने के लिए अंट-शंट कहानी बना रहा है। इस प्रकार किसी भी हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया। इतनी दूर तक देख पाने की उनमें अक्ल कहां थी? समय बीतता रहा। बेल लिपटते-लिपटते ऊपर शाखाओं तक पहुंच गई। बेल का तना मोटा होना शुरू हुआ और सचमुच ही पेड़ के तने पर सीढ़ी बन गई। जिस पर आसानी से चढ़ा जा सकता था। सबको ताऊ की बात की सच्चाई सामने नजर आने लगी। पर अब कुछ नहीं किया जा सकता था क्योंकि बेल इतनी मजबूत हो गई थी कि उसे नष्ट करना हंसों के बस की बात नहीं थी। 

एक दिन जब सब हंस दाना चुगने बाहर गए हुए थे तब एक बहेलिया उधर आ निकला। पेड़ पर बनी सीढ़ी को देखते ही उसने पेड़ पर चढ़कर जाल बिछाया और चला गया। शाम को सारे हंस लौट आए और जब पेड़ से उतरे तो बहेलिए के जाल में बुरी तरह फंस गए। जब वे जाल में फंस गए और फड़फड़ाने लगे, तब उन्हें ताऊ की बुद्धिमानी और दूरदर्शिता का पता लगा। सब ताऊ की बात न मानने के लिए लज्जित थे और अपने आपको कोस रहे थे। ताऊ सबसे रुष्ट था और चुप बैठा था। एक हंस ने हिम्मत करके कहा, ताऊ, हम मूर्ख हैं, लेकिन अब हमसे मुंह मत फेरो। दूसरा हंस बोला, इस संकट से निकालने की तरकीब तुम ही हमें बता सकते हो  आगे हम तेरी कोई बात नहीं टालेंगे |

सभी हंसों ने हामी भरी तब ताऊ ने उन्हें बताया, मेरी बात ध्यान से सुनो। सुबह जब बहेलिया आएगा, तब मुर्दा होने का नाटक करना। बहेलिया तुम्हें मुर्दा समझकर जाल से निकालकर जमीन पर रखता जाएगा। वहां भी मरे समान पड़े रहना। जैसे ही वह अन्तिम हंस को नीचे रखेगा, मैं सीटी बजाऊंगा। मेरी सीटी सुनते ही सब उड़ जाना। सुबह बहेलिया आया। हंसों ने वैसा ही किया, जैसा ताऊ ने समझाया था। सचमुच बहेलिया हंसों को मुर्दा समझकर जमीन पर पटकता गया। सीटी की आवाज के साथ ही सारे हंस उड़ गए। बहेलिया अवाक होकर देखता रह गया।

भावार्थ - वरिष्ठजन घर की धरोहर हैं। वे हमारे संरक्षक एवं मार्गदर्शक है। जिस तरह आंगन में पीपल का वृक्ष फल नहीं देता, परंतु छाया अवश्य देता है। उसी तरह हमारे घर के बुजुर्ग हमे भले ही आर्थिक रूप से सहयोग नहीं कर पाते है, परंतु उनसे हमे संस्कार एवं उनके अनुभव से कई बाते सीखने को मिलती है, बड़े-बुजुर्ग परिवार की शान है वो कोई बोझ नहीं हैं।

सोमवार, जनवरी 22

सच्चा उत्तराधिकारी

बहुत पुरानी बात हैं | एक गुरु को अपने उत्तराधिकारी की तलाश थी | वह अपने किसी योग्य शिष्य को दायित्व सौंपना चाहता था | वैसे तो उनके कई शिष्य थे, पर वह तय नहीं कर पा रहे थे की किसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करे | फिर उन्होंने उन सबकी एक परीक्षा लेने का निश्चय किया|


true heir, obedient disciple

गुरु जी ने अपने सभी शिष्यों को बुलाया और एक दीवार बनाने का निर्देश दिया | सभी शिष्य इस काम में जुट गए | दीवार बनकर तैयार भी हो गई, लेकिन गुरूजी ने उसे तोड़ देने का आदेश दिया | उन्होंने फिर से दीवार बनाने को कहा, दीवार फिर बनने लगी | गुरूजी ने फिर उसे तुडवा दिया | यह सिलसिला चलता रहा | धीरे-धीरे सभी शिष्य उकता गए और इस कार्य से किनारा करने लगे, परन्तु एक शिष्य चित्रभानु इस कार्य में जुटा रहा |

वह अकेले ही इस कार्य को करता रहा | बार-बार तोड़े जाने के बाद दीवार बनाने के काम से वह नहीं हटा | एक दिन गुरुजी उसके पास गए और बोले – ‘तुम्हारे सभी साथी काम छोड़ कर भाग गए, पर तुम अभी तक डटे हुए हो, ऐसा क्यों ?’


चित्रभानु हाथ जोड़कर बोला – ‘मै गुरू आज्ञा से पीछे कैसे हट सकता हूँ | मै तब तक इस कार्य को करता रहूँगा जब तक आप मना ना कर दे |’ गुरूजी बेहद प्रसन्न हुए, वह समझ गए की उनकी तलाश पूरी हुई | उन्होंने चित्रभानु को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हुए अपने सभी शिष्यों से कहा ‘संसार में सभी लोग ऊँची आकांक्षाए रखते हैं और सर्वोच्च पद पर पहुँचना चाहते हैं, मगर इसके लिए पात्रता भी जरुरी हैं | लोग आकांक्षा तो रखते है, पर पात्रता प्राप्त करने के लिए प्रयास नही करते या थोडा बहुत प्रयास करके पीछे हट जाते हैं | किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मात्र इच्छा ही नही दृढ़ता की भी आवश्यकता हैं | चित्रभानु में दृढ़ता हैं और धैर्य भी | ऐसा ही व्यक्ति मेरा सच्चा उत्तराधिकारी हो सकता हैं |’


Tags: True Heir, Diligence of Work, Obedient Disciple